छत्तीसगढ़

जंगल की गोद से निकली सोने सी सब्जियाँ फूटू-बोड़ा का स्वाद लोगो की यादों से जुड़ा हर मौसम में नहीं बस एक बार मिलती है ये नेमत  कीमतें सुनकर पसीना फिर भी थालियों में पहला हक़ इन्हीं का।

गरियाबंद _जैसे ही सावन की पहली फुहारें धरती पर गिरती हैं शहर के कोने-कोने में हरियाली की एक अलग सी चहल-पहल दिखने लगती है उसी के साथ बाजारों में भी ‘फूटू’ और ‘सरई बोड़ा’ जैसी मौसमी सब्जियों की रौनक लौट आती है लेकिन इस बार इन स्वादिष्ट जंगली सब्जियों की खुशबू के साथ महंगाई की चुभन भी महसूस हो रही है इन दिनों गरियाबंद से लेकर रायपुर तक ये सब्जियाँ लोगों को अपनी ओर खींच रही हैं चाहे कीमतें सुनकर पसीना क्यों न छूट जाए गरियाबंद जिले की सड़कों पर विशेषकर बस स्टैंड तिरंगा चौक और कचहरी रोड के किनारे फूटू और बोड़ा की बिक्री ने जोर पकड़ा है फुटू 200 रुपए जुरी और 1000-1500 रुपए किलो तक बिक रहा है जबकि बोड़ा 800 से 1000 रुपए किलो तक के दाम छू चुका है इसके बावजूद लोग इन्हें झोले में भरकर ले जा रहे हैं क्योंकि यह सब्जियाँ केवल साल में एक बार ही मिलती हैं और इनका स्वाद पूरे साल जुबान पर बना रहता है बुजुर्ग धर्मीन बाई की यादों से जुड़ा स्वाद 65 वर्षीय धर्मीन बाई सिन्हा जो गरियाबंद की मूल निवासी हैं फूटू और बोड़ा को केवल सब्जी नहीं बल्कि अपनी यादों की थाली का हिस्सा मानती हैं उन्होंने कहा जब पहली बारिश गिरती है और ये सब्जियाँ जंगल से निकलती हैं तो मन खुद-ब-खुद उन बीते दिनों में चला जाता है मैं हर साल अपनी बेटी और रिश्तेदारों को फूटू-बोड़ा भेजती हूँ जो भी एक बार खा लेता है वो हर साल इंतज़ार करता है ये सिर्फ सब्जी नहीं अपनापन है जो जंगल की मिट्टी से जुड़ा है सोने से भी महंगी स्वाद की खदान गरियाबंद और बस्तर जैसे इलाकों के जंगलों से निकलने वाली ये सब्जियाँ असल में मशरूम की जंगली प्रजातियाँ हैं खास बात यह है कि इन्हें खेतों में उगाया नहीं जा सकता साल के पहले 2-3 मानसूनी बारिशों के बाद ये साल के पेड़ों के नीचे जमीन से फूटती हैं सफेद और काले रंगों में पाई जाने वाली ये सब्जियाँ चिकन-मटन से भी महंगी बिक रही हैं कई जगह तो इनके दाम 1600 रुपए प्रति किलो तक पहुँच चुके हैं रायपुर भिलाई दुर्ग से लेकर तेलंगाना आंध्रप्रदेश और ओडिशा तक के लोग इन्हें लेने राजधानी पहुँच रहे हैं मिट्टी की कोख से स्वाद की सौगात इन सब्जियों की खूबी यह है कि ये जमीन के नीचे अपने आप उगती हैं बिना किसी खाद पानी या मानवीय देखरेख के ये प्रकृति का ऐसा उपहार हैं जो केवल बारिश की पहली नमी को महसूस कर जन्म लेती हैं ऐसे समय में जब हर चीज़ कृत्रिम होती जा रही है फूटू और बोड़ा आज भी प्रकृति की पवित्रता और स्वाद की सरलता का सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं गरियाबंद की बुजुर्ग महिलाएँ जैसे धर्मीन बाई इन सब्जियों को सिर्फ भोजन नहीं बल्कि विरासत मानती हैं यह मौसम केवल बारिश और हरियाली का नहीं है बल्कि स्वाद संस्कृति और स्मृतियों का भी है जो हर घर के रसोई तक अपनी खुशबू फैला रहा है।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *