गरियाबंद में नवरात्रि पर गुजराती समाज का भव्य रास-गरबा 55 वर्षों से परंपरा को जीवंत रखने जुटा पूरा समाज पारंपरिक गीत डांडिया और आकर्षक परिधानों से सजा आयोजन

गरियाबंद _ नवरात्रि पर्व का रंग-रूप हर ओर दिखाई दे रहा है इसी कड़ी में गरियाबंद का गुजराती समाज अपनी अद्भुत परंपरा को निभाते हुए इस साल भी भव्य रास-गरबा का आयोजन कर रहा है यह आयोजन 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक राजू भाई परिसर में धूमधाम से चल रहा है। गुरुवार को नवरात्रि के चौथे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु और नगरवासी पारंपरिक परिधान पहनकर गरबा में शामिल हुए ढोल-ढमाकों और पारंपरिक गीतों की थाप पर जब महिलाएं पुरुष युवा और बच्चे एक स्वर में ताल मिलाते हैं तो पूरा वातावरण माँ अम्बे के जयकारों और भक्तिभाव से सराबोर हो उठता है।
समिति अध्यक्ष अमित बखारिया ने प्रेस वार्तालाप पर लोकहित एक्सप्रेस न्यूज़ संवाददाता को बताया कि नवरात्रि का पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और दशहरे तक चलता है इस दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है गरबा और डांडिया नृत्य इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है जिसे देवी को प्रसन्न करने और भक्तिभाव प्रकट करने का माध्यम माना जाता है यहाँ रोजाना आरती के साथ गरबा की शुरुआत होती है और पूरा समाज एक परिवार की तरह माँ के चरणों में नृत्य कर अपनी श्रद्धा अर्पित करता है।
विशेष बात यह है कि गुजराती समाज बीते 55 वर्षों से लगातार इस परंपरा को जीवित रखे हुए है संरक्षक हरीश भाई भरत भाई ने प्रेस वार्तालाप पर लोकहित एक्सप्रेस न्यूज़ संवाददाता को बताया कि इस आयोजन की शुरुआत अमर सिंह टाक अमृत लाल मयानी हक्कू भाई बखरिया और डॉ. ठक्कर ने की थी तब से यह श्रृंखला अबाध रूप से जारी है और हर साल नवरात्रि में गरियाबंद की पहचान बन गई है नवरात्रि के दिनों में समाज के लोग रोजाना अलग-अलग ड्रेस कोड अपनाते हैं महिलाएं रंग-बिरंगी चुनरी चनिया-चोली और आभूषणों से सुसज्जित होकर आती हैं तो पुरुष पारंपरिक कुर्ता-पायजामा और केसरिया साफा पहनकर गरबा करते हैं बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी की भागीदारी इस आयोजन को और भी आकर्षक बना देती है बदलते दौर में भी गरबा महोत्सव में आधुनिकता की झलक देखने को मिल रही है जहाँ युवाओं द्वारा गरबा की नई विधाओं और प्रस्तुतियों को शामिल किया जा रहा है रोजाना रात्रि में सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु गरबा का आनंद लेने पहुँचते हैं ढोल नगाड़े ढोलकी और बांसुरी की धुन के बीच जब माँ अम्बे के पारंपरिक गुजराती गीत गूंजते हैं तो पूरा परिसर भक्तिभाव और उत्साह से सराबोर हो जाता है यह आयोजन सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है जहाँ पूरा समाज एकजुट होकर माँ की आराधना करता है गरियाबंद का गुजराती समाज हर साल नवरात्रि में इस महोत्सव को यादगार बनाने के लिए जुट जाता है और यह धरोहर नई पीढ़ियों तक पहुँचती रहती है गरबा की यही परंपरा नगरवासियों के बीच उत्साह भक्ति और भाईचारे का संदेश लेकर आती है।





