चंडीगढ हरियाणा

साधक निरंतर ध्यान साधना करते हुए विचार और विकार रहित जाता है : भारती

जगाधरी, हनुमानगेट स्थित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया, जिसके दौरान साध्वी सिद्धेश्वरी भारती जी ने दिव्य गुरु आशुतोष महाराज जी की प्रेरणा से ओतप्रोत कुछ प्रेरणादायी विचारों के द्वारा उपस्थित भक्तजनों को कृतार्थ किया।उन्होंने कहा कि विश्वास मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। जब किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा भाव के प्रति पूर्ण विश्वास जागृत होता है तब सूक्ष्म रूप से हमारी एकाग्रता उस व्यक्ति, वस्तु या भाव से जुड़ जाती है।आगे साध्वी जी ने विस्तारपूर्वक समझाते हुए कहा कि विश्वास एक काँच के उत्तल लेंस की तरह कार्य करता है जो सूर्य की बिखरी हुई रश्मियों को एक बिंदु पर केंद्रित करके अग्नि प्रकट कर देता है।इसी प्रकार जब विश्वास गहरा और दृढ़ हो जाता है तब वह भी मनुष्य के भीतर एक ऐसी अग्नि प्रकट करता है जिसमें उसके सभी संशय और दुर्भावनाएँ जलकर भस्म हो जाती है लेकिन ध्यान रहे,उस विश्वास का आधार नकारात्मक न हो क्योंकि जहाँ सकारात्मकता आधारित विश्वास हमारे जीवन का सर्वांगीण उत्थान एवं विकास करता है वहीं असत्य एवं नकारात्मकता आधारित विश्वास हमारे जीवन को पतन की गहराइयों में गिरा सकता है। जीत सदैव विश्वास की होती है क्योंकि विश्वास वह भावना है जब व्यक्ति का रोम रोम किसी व्यक्ति, वस्तु या भाव को लेकर दृढ़ निश्चयी हो जाता है और उसके भीतर कोई किंतु परंतु शेष नहीं रहता। एक ब्रह्मज्ञानी साधक, जो निरंतर ध्यान साधना करते हुए उस अनंत एवं असीम सत्ता परमात्मा के श्री चरणों में ध्यान लगाता है तब वह भक्ति मार्ग पर चलते हुए गुरु कृपा एवं स्वयं अपने पुरुषार्थ के द्वारा बुद्धि को विचार रहित, मन को विकार रहित और आत्मा को कर्म संस्कार रहित कर लेता है लेकिन ऐसा तभी घटित होता है जब उसका विश्वास और संकल्प चट्टान की तरह दृढ़ हो और उसके विश्वास को केवल बाहरी रूप से नहीं बल्कि भीतर से उस परम सत्य का दृढ़ आधार मिला हो जो चिरस्थाई है। यदि एक साधक के विश्वास में कमी दिखाई दे तो इसका अर्थ है कि अभी उसे अपने मन, बुद्धि और चित्त पर निरंतर कार्य करना है। झूठ व नश्वरता पर विश्वास हो जाना मनुष्य का स्वभाव है लेकिन उस अनंत व अगोचर परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास होना केवल तभी संभव हो सकता है जब वह विश्वास अनुभव आधारित हो।निःसंदेह विश्वास की जीत होती है लेकिन उस विश्वास की जीत होती है जिस विश्वास का आधार एक ऐसा दिव्य व अलौकिक स्रोत है जिसमें हमारे संपूर्ण जीवन को परिवर्तित कर देने का पूर्ण सामर्थ्य है। एक ब्रह्मनिष्ठ गुरू की शरण में आने के पश्चात ही शिष्य अनुभव आधारित ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करके अपने अंतःकरण एवं जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन की अनुभूति करता है जिसके पश्चात वह सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हुए दृढ़ विश्वास का सम्बल लेकर भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते हुए मानव जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है। इसी को विश्वास की जीत कहते हैं क्योंकि संसार में सब कुछ अस्थिर और नश्वर है और इस पर विश्वास कर लेना स्वयं के साथ छल करने के समान है।इस बात से प्रत्येक मनुष्य भलीभाँति परिचित है कि संसार सदा रहने वाला नहीं है और इस संसार में जो भी दृष्टिगोचर है वो पल प्रतिपल बदल रहा है। समय रहते अपने विश्वास को वह दिव्य एवं अलौकिक आधार दें जिससे हमारे विश्वास की जीत सुनिश्चित हो जाए और हम संसार से हार कर नहीं बल्कि विजयी होकर अंतिम श्वास लें। सत्संग कार्यक्रम के अंत में साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों का गायन करके समूह संगत को कृतार्थ किया।

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Tarun Sharma Senior Journalist Haryana.