छत्तीसगढ़

बरसते पानी में हजारों आदिवासियों का गरियाबंद कलेक्टरेट मार्च, राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

गरियाबंद _2 जुलाई 2025 बरसते बारिश में भीगते हुए आज गरियाबंद जिले में एक ऐतिहासिक जनसमूह देखने को मिला। जिले के मजरकट्टा स्थित आदिवासी विकास परिषद प्रांगण में जिले भर से हजारों की संख्या में सर्व आदिवासी समाज के लोग एकत्रित हुए। यह जनसमूह सर्व आदिवासी समाज के नेतृत्व में कलेक्टोरेट तक पैदल मार्च करते हुए पहुँचा और राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और कलेक्टर के नाम एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा।

इस विशाल रैली की विशेषता यह रही कि खराब मौसम के बावजूद भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। महिलाएं, बुजुर्ग और युवा – सभी ने एकजुटता के साथ अपनी आवाज़ बुलंद की।

यह थीं उनकी प्रमुख माँगें:

1. वन विभाग के पत्र पर आपत्ति – 15 मई 2025 को वन विभाग द्वारा जारी पत्र को असंवैधानिक बताते हुए, आदिवासी समाज ने आरोप लगाया कि यह पत्र ग्रामसभाओं के अधिकारों पर सीधा हमला है।

2. ग्रामसभाओं को वन प्रबंधन का अधिकार – ग्रामसभाओं और CFMC समितियों को तकनीकी और वित्तीय सहयोग के साथ स्वतंत्र रूप से वन प्रबंधन का अधिकार दिए जाने की माँग की गई।

3. वन भूमि से जबरन बेदखली पर रोक – हालिया बेदखली की घटनाओं की निंदा करते हुए, लंबित वनाधिकार दावों का पारदर्शी और समयबद्ध निपटारा सुनिश्चित करने की माँग की गई।

4. वनग्रामों का अधिकार बहाल हो – 2013 में राजस्व ग्राम में बदले गए वनग्रामों की त्रुटियों को सुधारने की अपील की गई।

5. LWE मुक्त क्षेत्रों में तेजी से वनाधिकार क्रियान्वयन।

6. PVTG समुदायों को पर्यावास अधिकार – उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार आदिवासी समुदायों को शीघ्र पर्यावास अधिकार देने की माँग की गई।

7. ग्रामसभा को सशक्त बनाने की माँग – ग्रामसभा को संस्थागत दर्जा, अलग पहचान, आर्थिक अधिकार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने की बात प्रमुखता से रखी गई।

8. सामुदायिक संसाधनों पर ग्रामसभा का स्वामित्व – जल, जंगल, ज़मीन से जुड़ी सभी संसाधनों पर ग्रामसभा का पूर्ण अधिकार सुनिश्चित करने की माँग की गई।

9. टाइगर रिज़र्व में ज़ीरो विस्थापन नीति की वकालत – बाघ अभयारण्यों और हाथी कॉरिडोर में निवासरत समुदायों के अधिकार सुरक्षित रखते हुए विस्थापन के बजाय सह-अस्तित्व आधारित नीति लागू करने की माँग की गई।

आंदोलनकारियों का कहना था:

“हमारा उद्देश्य केवल अधिकार की माँग करना नहीं, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त हक़ों को लागू करवाना है। हम वन, जल, ज़मीन के रक्षक हैं, और इन पर हमारा पारंपरिक अधिकार है।”।

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने कहा:

“आज का यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध नहीं बल्कि हमारी अस्मिता की लड़ाई है। जो अधिकार हमें संविधान और कानून से मिले हैं, उन्हें दबाने की कोशिश की जा रही है। वन विभाग द्वारा ग्रामसभाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप सीधे हमारे स्वशासन और जीवन-शैली पर हमला है। हम इसके खिलाफ हर लोकतांत्रिक मंच पर लड़ेंगे।”

जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम ने कहा:

“यह प्रदर्शन यह साबित करता है कि आदिवासी समाज जागरूक है और अपने अधिकारों को लेकर एकजुट भी। महिलाओं की भागीदारी इस आंदोलन की विशेषता रही। हम चाहते हैं कि ग्रामसभाओं को पूरी तरह सशक्त किया जाए, ताकि वे अपनी ज़मीन, जंगल और संसाधनों का प्रबंधन खुद कर सकें। यह अधिकार कोई कृपा नहीं, हमारी हकदारी है।”

प्रशासन की प्रतिक्रिया:

एसडीएम महराना ने गरियाबंद

में प्रदर्शनकारि प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से ज्ञापन प्राप्त कर सभी माँगों को शासन तक पहुंचाने का आश्वासन दिया।

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