
- छोटी सी उमर में देखे कैसे कैसे उतार-चढ़ाव और फिर खड़ी कर दी दो दो ट्रेडिंग कंपनी
- बार बार असफल होने के बाद भी नही छोड़ी हिम्मत
- एक समय ऐसा भी आया जब घर में कुछ बचा नही था खाने को भी
ये कहानी है दो भाईओं अजय और विजय की तो बात शुरू से ही करते हैं , सन 1980 और 1981 में स्वर्गीय मिलाप चन्द के घर टिक्कर खात्रियाँ ज़िला हमीरपुर में जन्मे दो बच्चों को देख कर कोई क्या बोल सकता था कि उनकी जिन्दगी में इतने बुरे दिन भी आयेंगे दो वक्त की रोटी के भी लाले पद जाएँगे I
मिलाप चन्द की छोटी सी एक करियाने की दुकान थी जिससे वो अपने पुरे परिवार का जीवन निर्वहन कर रहे थे घर में कमाने बाला एक और खाने बाले 5 थे I जैसे तैसे जिन्दगी गुजर रही थी सब खुश थे लेकिन किसी को क्या पता था की भविष्य के गर्ग में क्या छुपा है बड़ी बेटी की शादी क बाद उनकी तबियत कुछ खराब रहने लगी, 29 जून 1994 को जब अजय की उम्र 15 साल और विजय की उम्र महज 13 साल की थी उनके पिता जी का देहांत हो गया उस समय अजय 10वीं में और विजय 8 वीं में पढ़ते थे I दोनों भाईओं को कुछ समज नही आ रहा था की क्या करें जब तक उनको ये एहसास हुआ की अब सब उनको ही संभालना है तब तक पिता जी की जो जमा पूंजी थी वो भी ख़त्म हो गयी ,छोटे बच्चे थे दुकानदारी का त्जुर्वा नही था आखिरकार दुकान भी ठप हो गयी जो कुछ था सब ख़त्म हो गया I उसके बाद माता जी आंगनवाडी में हेल्पर लगी लेकिन उस समय उनको में महज 300-500 रूपये तक मिलते थे जिससे 4 लोगों का गुजरा होना मुश्किल था I कुछ समज नही आ रहा था की अब क्या करें लेकिन बड़े भाई अजय ने घर की दुकान छोटे भाई क हवाले कर खुद अपने चचेरे भाई विपिन कतना जिनका बहुत बड़ा कारोवार तरक्वारी में है 2001 में नौकरी कर ली I कुछ साल नौकरी करने के बाद जब अजय को लगा की अब उन्हें कारोवार की समज आ गयी है खुद की दुकान करने का फैसला किया इस कम में उनके चचेरे भाई विपिन ने भी उनका साथ दिया और अजय को टोनी देवी में ट्रंक पेटी की दुकान खोल दी लेकिन काची उम्र और कम तजुर्वा होने की बजह से कारोवार में घाटा होने से दुकान बंद हो गयी I
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लेकिन अजय ने हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर बैंक से लोन ले कर कारोवार हो बदलने की सोची इस बार फर्नीचर हाउस खोला कारीगर रखे मेहनत की , कारोवार चला भी लेकिन अभी दोनों भाइयों के इम्तहान कंहाँ ख़त्म होने बाले थे एक बार फिर कारोबार में घाटे के चलते अजय की दुकान ढूब गयी और उधर विजय की की करयाने की दुकान जिससे परिवार का पेट पल रहा था अचानक इलेक्ट्रिक शोर्ट सर्कट के चलते राख हो गयी I अब तो जैसे दुखों का पहाड़ ही परिवार पर टूट पड़ा हो क्या करे कुछ समज नही आ रहा था , लेकिन दोनों भाईओं ने हिम्मत नही हारी कुछ करने का जनुन था और जिनगी से लड़ने की हिम्मत ये ही सब देख कर सभी गाँव बालों ने अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से किसी ने 50,किसे ने 100 और 500 रूपये इकठ्ठा किये और उनकी किरयाने की दुकान को फिर से खड़ा किया , सरकार की तरफ से सिर्फ 20,000 की मदद मिली। अब क्या था जिंदगि की जंग तो लड़नी थी एक बार फिर हिम्मत करके किरयाने की दुकान शुरू की इसी बीच माता जी को भी आंगनवारी में हेल्पर की जॉब लग गयी पर उस समय हेल्पर को केवल 300 से 500 रु तक मिलते थे परिवार का गुजरा मुस्किल से हो रहा था I सन 2011 में दोनों भाईओं की शादियाँ भी हो गयी इकदम से परिवार बढने लगा और आमदनी उस हिसाव से नही बढ़ रही थी I इस मुस्किल घडी में दोनों भाईओं ने कारोवार बड़ने की सोची I
बात 2012 की है बड़ी हिम्मत के साथ अजय ने कतना लाइट एंड टेंट हाउस की छोटी सी शुरुआत महज 20000 रु से केवल एक शादी का सामान से की और उधर विजय ने चिराग हार्डवेयर ने नाम से एक ट्रेडिंग कंपनी की नींब रख डाली , केवल 25000 से खोली गयी कंपनी चलने का भरोषा खुद विजय को भी नही था क्यूंकि इतने नाकामयाबियाँ देख कर कुछ करने की हिम्मत अब दोनों की ही पस्त हो चुकी थी लेकिन हार न मानने की और जिन्दगी की चुनोतियों का मुकाबला करने की कसम खा रखी थी I किसे क्या पता था की इस बार इनकी मेहनत इनके बैडलक को गुडलक में बदल देगी I और आज लगभग 7 साल की कड़ी मेहनत के बाद आज कतना लाइट एंड टेंट हाउस ने 20 लोगो को रोजगार दिया है और चिराग ट्रेडिंग कंपनी से भी 3 घरों के चूल्हे जलते हैं I आज भी जब दोनों भाई पिछले वक्त को यद् करते हैं तो फूट फूट कर रो देते है अपनी ये दुःख भरी कहानी भी उन्होंने रोते रोते ही सुनाई साथ में इतना भी कहा कि हमरी तरह बुरा वक्त किसी को न आये , तथा सभी गाँव वासियों का धन्यवाद भी किया कि उनके सहयोग और प्यार को वो सब सारी जिन्दगी नही भूल पाएंगे I
- अजय कतना लाइट एंड टेंट हाउस का इतिहास
. 20,000 से शुरू किया था टेंट हाउस का काम
. आज कर सकते है एक साथ 10 शादियाँ
. शहर में नामी टेंट हाउसों में है अब नाम सुमार
. मैरिज पैलेस खोलने का है सपना
. 20 लोगों को दिया है रोजगार
. चिराग़ ट्रेडिंग कम्पनी तब और अब
. 25,000 से शुरू की थी कंपनी . आज है 1.5 करोड़ का टर्नओवर . छोटे से गाँव से करते है कई चीजों का होलसेल . अपने ही गाँव में है बड़े शहरों की तरह मॉल खोलने का सपना . गरुड़ पाइप के है डिस्ट्रीब्युटर
- विपन कतना के निभाया बड़े भाई होने का फर्ज
. जब सबने साथ छोड़ दिया तब हर कदम पर किया सहयोग
. भाई ही नही बल्कि बाप का भी निभाया फर्ज
. खुद भी है एक बड़ी कतना ट्रेडिंग कंपनी (तरकबाडी) के मालिक
आपकी सफलता का गुडलक किसे मानते हैं दोनों भाई
- दोनों भाई अपनी धर्मपत्नियों मीनाक्षी और बिंदु को मानते हैं लकी
- इनके आने के बाद ही सफलता की सीडी पर रखे है कदम
- और फिर पीछे मुड कर नही देखा
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