जगाधरी।16 सितंबर: हनुमान गेट स्थित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया जिसके दौरान स्वामी गुरुदेवानंद जी ने बहुत ही प्रेरणादायी एवं दिव्य प्रवचनों से भक्त जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने गुरू वचनों की महिमा समझाते हुए कहा कि गुरु के वचन मुख से कहे गए कुछ शब्द नहीं होते बल्कि उनके वचनों में तो सम्पूर्ण सृष्टि को बदल देने का सामर्थ्य समाया होता है।आगे स्वामी जी ने विस्तारपूर्वक समझाते हुए कहा कि गुरु के वचन उनकी तपस्या की अभिव्यक्ति होते हैं तभी उनमें हर असंभव कार्य को संभव करने का सामर्थ्य सूक्ष्म रूप में समाया होता है।परमपिता परमात्मा जब साकार रूप धारण करके धरा पर आते हैं तब वे प्रकृति के बंधनों में बँधे हुए दृष्टिगोचर तो होते हैं लेकिन वास्तविक में सदैव मुक्त रहते हैं। वे तो केवल हम जीवों के कल्याण हेतु धरा पर अवतरित होकर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैं। गुरु के वचनों पर विश्वास रखते हुए माता शबरी ने श्री राम की भक्ति को प्राप्त कर लिया और भक्त शिरोमणि कहलाईं। पूर्व जन्मों के पुण्य संस्कारों की पूंजी ही ऐसी पूर्ण ब्रह्म सत्ता की शरण तक लेकर जाती है अन्यथा कई कल्पों तक जीवात्मा जन्म मरण के चक्रव्यूह में फँसा रहता है।जब प्रभु की कृपा दृष्टि जीव पर होती है तभी वह गुरु की शरण में आकर बैठता है और उनके श्री वचनों को ग्रहण करके जीवन को परम पावन एवं कल्याणकारी बनाता है।एक साधारण व्यक्ति भी गुरू वचनों का अनुसरण करते हुए सहज ही देवत्व को धारण कर लेता है लेकिन अगर शिष्य अपने मन और बुद्धि को गुरू वचनों से अधिक महत्व देता है तो उसका आध्यात्मिक पतन हो जाता है जैसे राजा जनमेजय ने गुरु के वचनों पर संशय कर के अपने जीवन का पतन कर दिया। ऋषि वेदव्यास जी ने अपने वचनों में कहा कि एक व्यक्ति को अपना भविष्य पता हो तब भी वह भावी को बदल नहीं सकता लेकिन गुरु कृपा के द्वारा बड़े से बड़ा कर्म संस्कार भी टल जाता है।यह सुनकर राजा जनमेजय ने गुरू वेदव्यास जी से अपना भविष्य पूछा और अपने भविष्य को बदल देने का दावा कर दिया। वह संशयग्रस्त होकर और अपने ही मन बुद्धि के दायरे में फंसकर गुरु से भी विमुख हो गया। उसने बहुत प्रयास किया लेकिन अपने भविष्य में कुछ भी बदल नहीं पाया और अंत में कुष्ठ रोग के कारण ही उसकी मृत्यु हो गई। इतिहास साक्षी है कि जब भी कोई गुरु वचनों पर दृढ़ विश्वास के साथ चला तो उसके जीवन का सदैव कल्याण ही हुआ लेकिन गुरू वचनों पर संशय करने वाले को जीवन में बड़ी हानि का सामना करना पड़ा।गुरु वचनों का महत्व समझने से पहले हमें जीवन में गुरु के महत्व को समझना होगा और अपने मिथ्या अहंकार को त्याग कर पूर्ण ब्रह्म सत्ता सद्गुरु के श्री चरणों में स्वयं को तिरोहित करना होगा तभी हम जीवन में गुरु वचनों को यथार्थ रूप में शिरोधार्य करके अपने जीवन का कल्याण कर पाएंगे। सत्संग कार्यक्रम के अंत में साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों का गायन करके समूह संगत को कृतार्थ किया।
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