यमुनानगर, (तरुण शर्मा ) लोकहित एक्सप्रेस। 8 फरवरी- चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र दामला द्वारा गन्ना उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीकें विषय पर किसान गोष्ठी का आयोजन 8 फरवरी 2024 को किया गया। इस अवसर पर अतिथि के रूप में डॉ. अश्विनी कुमार, सरस्वती शुगर मील यमुनानगर ने शिरकत की। उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए गन्ने की उन्नत खेती करने का आह्वान किया। उन्होंने किसानों को जागरूक रहने की सलाह दी और अंधाधुंध रासायनिक दवाइयां के प्रयोग से बचने का भी आग्रह किया। उन्होंने गन्ने की खेती के लिए ध्यान रखी जाने वाली सावधानियां के बारे में विस्तार पूर्वक बताया और कहा कि गन्ने की खेती में रोगों, किटों व खरपतवारों के नियंत्रण एवं उर्वरक प्रबंधन में एकीकृत प्रबंधन व नियंत्रण प्रणाली अपनाई जानी चाहिए तथा और किसानों को अधिक उपज लेने के लिए गन्ने के बीज का चुनाव, बीज उपचार, खेत की तैयारी, बिजाई का तरीका, उर्वरक प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, रोगों व किटों के नियंत्रण व सिंचाई प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए व अगर उन्हें इनके बारे में गहन जानकारी होगी तो सही दवाई व उर्वरकों का उचित मात्रा में व जरूरत के समय पर ही प्रयोग किया जा सकेगा जो उन्नत खेती के लिए अति आवश्यक है।
कृषि विज्ञान केंद्र दामला के संयोजक डॉ संदीप रावल ने किसानों को संबोधित करते हुए गन्ने की वैज्ञानिक खेती में किस्मों व कृषि सस्य क्रियाओं के बारे में तकनीकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गन्ने की बिजाई का उचित समय भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उचित किस्म का चुनाव, उचित पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी। उन्होंने बिजाई की विभिन्न तकनीकों के बारे में भी विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए उनके उपज में लाभ के बारे में बताया तथा उन्होंने किसानों को अधिक आय प्राप्त करने के लिए अंत: फसल कृषि तकनीकी के बारे में भी किसानों को सुझाव दिए।
वानिकी विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने वानिकी पौधे के शुरुआती अवस्था में गन्ने लगाकर अतिरिक्त लाभ लेने के बारे तथा वातावरण में वानिकी के महत्व को समझाते हुए इसके आर्थिक फायदे से भी विस्तार पूर्वक अवगत कराया। इंजि. कपिल सिंगल जिला विस्तार विशेषज्ञ ने गन्ने की खेती में मशीनी तकनीकी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गन्ने की खेती में मशीनीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने बीज उपचार मशीन, मिट्टी चढ़ाने हेतु मशीन, टपका व स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकें, ड्रोन द्वारा दवाई व उर्वरकों का छिड़काव आदि का दिन प्रतिदिन बढ़ते महत्व के बारे में जानकारी दी। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि समय-समय पर कृषि में मशीनी तकनीकें की जानकारी प्राप्त करें और मशीनी तकनीकी माध्यम से खेती में उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ देश की प्रगति में भी अपना योगदान दें।
डॉ. विशाल गोयल मृदा विज्ञान विशेषज्ञ ने इस अवसर पर खेती में उपयोग किया जा रहे अत्यधिक रसायनों के भूमि स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणाम से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि रासायनिक दवाइयां व उर्वरकों के न्याय संगत प्रयोग नहीं किए जाने से मृदा की उर्वरा शक्ति में भारी कमी हो रही है। सूक्ष्म पोषक तत्वों व कार्बनिक पदार्थ साल दर साल घटते जा रहे हैं और यदि ऐसा ही खेती में चलता रहा, तो सभी आवश्यक पोषक तत्व जो फसल के लिए जरूरी है, को फसल उत्पादन में प्रयोग करना ही पड़ेगा अन्यथा उत्पादन नहीं लिया जा सकेगा, जो रसायनों से भरपूर भी होगा व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी और मिट्टी का स्वरूप भी बंजर हो जाएगा। उन्होंने इसके बचाव हेतु उचित फसल चक्र, फसल विविधीकरण, फसल अवशेषों का भूमि में मिलाया जाना, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन, कीट एवं रोग प्रबंधन, दलहनी व हरी खाद वाली फसलों का समावेश तथा पशु जनित गोबर खाद का खेती में प्रयोग के माध्यम से मृदा की बिगड़ती दशा को सुधार जाना सुनिश्चित हो पाएगा।
गृह विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. आशमा खान ने उपस्थित किसानों को स्वस्थ रहने के लिए संतुलित व पौष्टिक आहार के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी और बताया कि भोजन व्यंजन का स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सेवन करें व कुछ भोजन व्यंजन बीमारियों से बचाव व ठीक करने की क्षमता भी रखते हैं। उन्होंने स्वास्थ्यवर्धक फल एवं सब्जियों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य सलाहकार डॉ. एन. के. गोयल, डॉ. आराधना बाली, डॉ. करण सैनी, डॉ. अजीत सिंह तथा लगभग 300 प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे।
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